Wednesday, February 15, 2023

यसपटक कबिता लेखिएन :

 यसपटक कबिता लेखिएन :

यसपटक -

कबिता लेखूँ भन्छु 

बेहुली कविताको सिन्दुर पुछिएपछि 

कविताको शीर्षक नै भेटिएन  |

----------------१ ---------------------------

यसपटक -

कबिता लेखूँ भन्छु 

फूलजस्तो कोमल शब्दहरु 

फलामजस्तो कठोर मनमा अटाउनै सकिएन। 

-------------------२ --------------------------

यसपटक -

कबिता लेखूँ भन्छु 

पहाडजस्ता अग्ला भावनाहरु 

स्वयम पहिरोसंगै बगेपछि भावना पोखनै सकिएन । 

---------------३ ------------------------------

यसपटक -

कबिता लेखूँ भन्छु

अक्षर बोकेर उभिएको सेतो हिमाल 

हुस्सुले अनुहार छोपेपछि शब्दको रुप दिनै सकिएन। 

------४ ----------------------------------------

यसपटक -

कबिता लेखूँ भन्छु

अनूभूति सहितका पवित्र मनोभावहरु 

तरंगहिन भएपछि ब्यक्त गर्ने सकिएन। 

-----------------५ -------------------------

यसपटक -

कबिता लेखूँ भन्छु

पाखा पखेराबिच फुलेका गुराँसका मनोबेगहरु 

फुल्नु अगावै निमोठिएपछि अभिव्यक्त गर्ने सकिएन। 

---- --- ६--------------------------------

          (समाप्त) 

स्रष्टा : ड़ा दीपक यात्री

लेखनाथ-२७, कास्की 

हाल :प्रमुख सूचना प्राबिधिक ,

नेपाल क्यान्सर हस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर

ललितपुर नेपाल

दिनांक : २०७९ साल फाल्गुन ३  गते 

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