यसपटक कबिता लेखिएन :
यसपटक -
कबिता लेखूँ भन्छु
बेहुली कविताको सिन्दुर पुछिएपछि
कविताको शीर्षक नै भेटिएन |
----------------१ ---------------------------
यसपटक -
कबिता लेखूँ भन्छु
फूलजस्तो कोमल शब्दहरु
फलामजस्तो कठोर मनमा अटाउनै सकिएन।
-------------------२ --------------------------
यसपटक -
कबिता लेखूँ भन्छु
पहाडजस्ता अग्ला भावनाहरु
स्वयम पहिरोसंगै बगेपछि भावना पोखनै सकिएन ।
---------------३ ------------------------------
यसपटक -
कबिता लेखूँ भन्छु
अक्षर बोकेर उभिएको सेतो हिमाल
हुस्सुले अनुहार छोपेपछि शब्दको रुप दिनै सकिएन।
------४ ----------------------------------------
यसपटक -
कबिता लेखूँ भन्छु
अनूभूति सहितका पवित्र मनोभावहरु
तरंगहिन भएपछि ब्यक्त गर्ने सकिएन।
-----------------५ -------------------------
यसपटक -
कबिता लेखूँ भन्छु
पाखा पखेराबिच फुलेका गुराँसका मनोबेगहरु
फुल्नु अगावै निमोठिएपछि अभिव्यक्त गर्ने सकिएन।
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(समाप्त)
स्रष्टा : ड़ा दीपक यात्री
लेखनाथ-२७, कास्की
हाल :प्रमुख सूचना प्राबिधिक ,
नेपाल क्यान्सर हस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर
ललितपुर नेपाल
दिनांक : २०७९ साल फाल्गुन ३ गते
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