Saturday, November 5, 2016

यो यात्रीको कबि मन अब ,थामियोस कसोरी


यो यात्रीको कबि मन अब ,थामियोस कसोरी !

------------------------------------------------------

गैरीटारी पलपल धानका ,बालाभित्र झुलेका !

त्यही टारीको मुटु भित्रै सानो गोठ ठडेका !!

किसानबा गर्छन रेखदेख ,गोठबाटै नियाली !

यो यात्रीको कबि मन अब ,थामियोस कसोरी !!

------------अ -------------------------------------

हरा रंगको कोदो ,पुष्टक परी परी फसल !

धर्ती सारा हरा ,प्रणय मन भो यत्रतत्र !!

मौरी नाच्न थाले ,हरीत घासको पातमाथी !

यो यात्रीको कबि मन अब ,थामियोस कसोरी !!

------------आ--------------------------------

उषा फैले धर्तीउपर,किरण बिस्कुन सरी !

टल्के ढुंगे छाना ,टारीबारीसंग लाई मितेरी !!

खोलानाला बग्ने सललल ,सुसाउदै सुसेली !

यो यात्रीको कबि मन अब ,थामियोस कसोरी !!

----------------इ ---------------------------------------

हाम्रा सुन्दर पहाड ,स्वर्गीय ती गाउबस्ती !

दल्दै रातोमाटो र कमेरोले बनेका गृहस्थी !!

हेर्दै लोभ लाग्ने,प्रकृतीको  दान स्वर्गे माथी !

यो यात्रीको कबि मन अब ,थामियोस कसोरी !!

------------------ई -------------------------------------

----------(समाप्त )--------------
--
. दीपक यात्री
सिनियर इञ्जिनिएर ;भेरिएन सिस्टम
हैदराबाद भारत
स्थायी ठेगाना: लेखनाथ - ,कास्की नेपाल

No comments:

Post a Comment